नमस्कार, किसान भाइयों आज हम इस पोस्ट में बात करेंगे Tinde Ki Kheti के बारे में। टिंडा कुकरबिटेसी प्रजाति की फसल है जिसके कच्चे फल सब्जी बनाने के काम आते है। टिंडे के फल औषधीय गन वाले भी होते है। टिंडे के कच्चे फलों में 1.4% प्रोटीन, वसा 0.4%, कार्बोहाइड्रेट 3.4%, कैरोटीन 1.3% और 18% विटामिन होते हैं।
टिंडे की खेती के बारे में

‘इंडियन स्क्वाश’ के नाम से प्रसिद्ध टिंडा उत्तर भारत की एक प्रमुख फसल है। जिसे गर्मियों में उगाया जाता है। टिंडे की खेती हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश राज्यों में की जाती है। टिंडे की फसल को साल में दो बार उगाया जाता है, पहले ‘जायद’ के मौसम में फरवरी-मार्च महीने में और दूसरा ‘खरीफ’ के मौसम में जून-जुलाई के महीने में। टिंडे का औषधीय महत्व भी बहुत अधिक है सूखी खांसी और रक्त संचार के मरीजों को चिकित्सा टिंडे का सेवन करने की सलाह देते हैं।
Tinde Ki Kheti: उपयुक्त जलवायु
टिंडे की खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी जिसमें जीवाश्म की मात्रा उपयुक्त हो और उसमें जलधारण की क्षमता भी अधिक को टिंडे की खेती सर्दियों के मौसम में नहीं हो पाती है क्योंकि पीला के कारण टिंडे की फसल नष्ट हो जाती है। अतः टिंडे की फसल गर्मियों में ही उगाई जाती है। टिंडे की फसल फरवरी-मार्च में लगाई जाती है जो मई-जून में फल देता है। बारिश के मौसम में भी टिंडे की फसल उगाई जा सकती है। लेकिन इस मौसम में टिंडे की फसल में कीटों तथा अन्य रोगों का प्रकोप पर अधिक रहता है।
Tinde Ki Kheti: उन्नत किस्में
बढ़ती तकनीक और आधुनिकता के इस दौर में कृषि के क्षेत्र में भी बहुत से बदलाव और क्रांतियां आई है जो टिंडे की फसल पर भी लागू होती हैं। इस बदलाव भरे युग में टिंडे की कई किस्मों की खोज हुई है। वैसे तो टिंडे की फसल 2 महीने में पककर तैयार हो जाती है लेकिन टिंडे की कुछ ऐसी प्रजातियां भी हैं जो आपको अधिक पैदावार के साथ-साथ अच्छा मुनाफा भी दिलायेंगी। इनमें टिंडा एक्स-48, टिंडा लुधियाना, पंजाब टिंडा, टिंडा-1, अन्नामलाई टिंडा, स्वाति, बीकानेरी और सागर नरेश टिंडे की प्रमुख किस्में हैं।
खेत की तैयारी
टिंडे की खेती (tinde Ki Kheti) के लिए सबसे पहले खेत को मिट्टी पलट हल से जोता जाता है। उसके बाद हैरो और कल्टीवेटर से तीन-चार बार और जोतना चाहिए। फिर मिटटी भुरभुरी हो जाने के बाद उसमें 8-10 टन प्रति एकड़ के अनुसार गोबर की खाद डालकर खेत को जोत दें। जिससे गोबर की खाद खेत में अच्छी तरह से मिल जाए। फिर क्यारियाँ बनाकर टिंडे की फसल उगाने की प्रक्रिया को संपन्न करें।
Tinde Ki Kheti: बीच की मात्रा और उपचार
टिंडे की फसल के लिए प्रति एकड़ 1.5 किलो ग्राम तक बीज की आवश्यकता होती है। इन बीजों को कम से कम 12 घंटे पहले भिगो देना चाहिए। फिर दो ग्राम प्रति किलोग्राम कार्बेन्डाजिम या 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से थीरम से बीजों का उपचार करें। जिससे टिंडे के बीच मिट्टी में लगने वाले कवक जनित रोगों से सुरक्षित रह सके। इसके बाद टिंडे के बीजों को ट्राइकोडर्मा बिराइड 4 ग्राम या स्यूडोमोनास प्लूरोमास 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से भी उपचारित करें। इन उपचारों को करने के बाद टिंडे के बीजों को छाया में सुखाएं और फिर इनको बोने की प्रक्रिया शुरू करें।
खाद एवं उर्वरक
टिंडे की फसल में कुछ प्रमुख तत्वों जिसमें Nitrogen 40KG, Potash 20KG, Phosphorus 20KG की आवश्यकता होती है। इनकी पूर्ति के लिए किसान भाइयों को Urea 90 KG, Singal Super Phasphet 125KG और Murate Of Potash 35 KG प्रति एकड़ डालना चाहिए। इनमें Singal Super Phasphet, Murate Of Potash और Urea की एक तिहाई मात्रा टिंडे की फसल उगते समय ही डाल देनी चाहिए। इसके बाद Urea की एक-तिहाई मात्रा 20 से 25 दिन बाद और एक-तिहाई मात्रा दोबारा 40 से 45 दिन बाद डालते हैं। इन जरूरी उर्वरकों के अलावा मैलिक हाइड्रोक्साइड के 50 पम का 2 से 4% मात्रा में पत्तियों पर छिड़काव करना चाहिए। जिससे टिंडे की पैदावार में 50 से 60% की बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
टिंडे की फसल की बुवाई की विधि
टिंडे की फसल के क्यारियों के ऊपर उगाई जाती है इसके लिए 1.5 से 2 मीटर चौड़ी और 15 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियां बनायें। दो क्यारियों के बीच 1 मीटर चौड़ी नाली रखें. क्यारी के दोनों किनारो पर टिंडे के बीच बोएं। इन बीजों की गहराई 1.5 से 2 सेंटीमीटर रहनी चाहिए। ज्यादा गहरे में बीज चले जाने से इनके अंकुरित होने में समय लगता है और हो सकते है की बीजों का अंकुरण न भी हो।
टिंडे की खेती के लिए सिंचाई का तरीका
टिंडे की फसल गर्मी के मौसम में उगाई जाती है इसलिए इसमें नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। टिंडे की फसल सूखे खेत में बोई जाती है। इसलिए पहली सिंचाई बुवाई के दूसरे या तीसरे दिन ही कर देनी चाहिए। इसके बाद 5 से 7 दिन के अंतराल पर टिंडे की फसल में सिंचाई करते रहना चाहिए। बारिश के मौसम में उगाई जाने वाली टिंडे की फसल में वर्षा के अनुसार सिंचाई करने चाहिए और यह ध्यान रखें कि फसल बिल्कुल भी सूखने ना पाए नहीं तो टिंडे के उत्पादन में इसका दुष्प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ-साथ आपको बता दें कि टिंडे की फसल में ड्रिप सिंचाई भी प्रचलित है।
खरपतवार नियंत्रण
टिंडे की फसल में फसल के साथ-साथ कई प्रकार के और खरपतवार उग आते हैं जो फसल की पैदावार को प्रभावित करते हैं। इन खरपतवारों से फसल की वृद्धि और विकास अच्छे से नहीं हो पाता है और इसके नियंत्रण के लिए टिंडे की फसल को समय-समय पर निराई और गुड़ाई देनी चाहिए।
टिंडे की फसल में रोग और कीट नियंत्रण
टिंडे की फसल में कई प्रकार की कीटों का प्रभाव होता है। इनमें माहू और हरा तेला, लाल भृंग, सफेद मक्खी और फल मक्खी प्रमुख हैं। इन कीटों के प्रकोप से टिंडे की पैदावार में कमी आती है। बारिश के मौसम में उगाई जाने वाली टिंडे की फसल में इन कीटों से रक्षा के लिए समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव अवश्य करना चाहिए। तेला और चेपा नामक कीटों का प्रकोप भी टिंडे की फसल में दिखाई देता है। इसके कारण पत्ते मुड़कर कप का आकार ले लेते हैं और मुरझाकर नीचे गिर जाते हैं। इसके उपचार के लिए 5 ग्राम थाइमेक्थॉसम 15 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे कर दें।
बीमारियां
टिंडे की फसल भी अन्य फसलों की तरह रोगग्रस्त हो जाती है। Tinde Ki Fasal में लगने वाले रोगों में चूर्णी फफूंद, मृदुरोमिल फफूंद, मोजेक, एन्थ्रेक्नोज और सफेद रंग के धब्बे प्रमुख हैं। जिनका उचित उपचार करना बहुत जरूरी है नहीं तो टिंडे की फसल में भारी नुकसान होगा अगर टिंडे की फसल में पत्तों में सफेद धब्बे हैं और पत्ते तथा फल पकने से पहले गिर रहे हैं तो 20 ग्राम सल्फर को 10 लीटर पानी में घोलकर दो-तीन बार 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
टिंडे की फसल की तुड़ाई और संरक्षण
टिंडे की फसल एक नकदी फसल है जो किसान को रोज कमाई करके दे सकती है। यह फसल बुवाई के 50 से 55 दिन बाद बाजार में ले जाने लायक हो जाती है, तो किसान इसके फलों की तुड़ाई दो-तीन दिन के अंतराल पर करते हैं। अगर खेत में टुकड़ों में इसकी तुड़ाई करें तो एक क्रम बन सकता है। जिससे टिंडे के खेत में रोज तुड़ाई हो और किसान रोज बाजार में अपनी फसल लेकर जा सकें। बाजार में उपलब्ध विभिन्न टिंडे की उन्नतशील किस्मों में प्रति एकड़ 100 से 125 क्विंटल उपज प्राप्त की जा सकती है। किसान टिंडे की फसल को ₹20 से ₹40 प्रति किलोग्राम की दर से बाजार में बेंच सकते हैं।
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निष्कर्ष
इस पोस्ट में Tinde Ki Kheti के बारे में विस्तार से बताया गया है और टिंडे यह भी बताया गया है जैसे कि टिंडे की फसल की बुवाई कैसे की जाती है, टिंडे की फसल के लिए खेत की तैयारी कैसे करें, टिंडे की फसल में कौन-कौन से रोग लगते हैं और टिंडे की फसल में लगने वाले कीटों और रोगों के बारे में, टिंडे की फसल में कितने उर्वरकों की आवश्यकता होती है। आशा करता हूं कि किसान भाइयों को मेरे द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी होगी और टिंडे की खेती में उनका मार्गदर्शन करेगी। अगर आपको इस लेख में कोई त्रुटि लगे या कोई सुझाव हो तो मुझे कमेंट करके अवश्य बताइएगा।
FAQs
टिंडे की फसल साल में दो बार जायद में फरवरी मार्च और खरीफ में जून जुलाई में उगाई जाती है।
चूर्णी फफूंद, मृदुरोमिल फफूंद, मोजेक, एन्थ्रेक्नोज और सफेद रंग के धब्बे टिंडे की फसल में लगाने वाले प्रमुख रोग हैं। किसान भाइयों को इन रोगों का उपचार समय रहते कर लेना चाहिए नहीं तो टिंडे की पैदावार प्रभावित होतीहै।
टिंडे की फसल बेवाई के 50 से 55 दिन में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है और तीन-चार दिन के अंतराल पर उसकी तुड़ाई की जाती है।
बाजार में उपलब्ध टिंडे की उन्नतशील किस्मों में टिंडा एक्स-48, टिंडा लुधियाना, पंजाब टिंडा, टिंडा-1, अन्नामलाई टिंडा, स्वाति, बीकानेरी और सागर नरेश प्रमुख हैं। जो किसानो को एक उचित मुनाफा दे सकती हैं।